धृतराष्ट्र-पुत्र के लिए सिंहासन तैयार! …क्योंकि गुलाम मानसिकता हो गई है लोगों की आदत

- नरेश सोनी
दुर्ग। धृतराष्ट्र इन दिनों काफी नाराज चल रहे हैं। उनके साम्राज्य के कुछ लोगों ने राजद्रोह कर दिया है… दुर्योधन की ताजपोशी के खिलाफ लोगों का उठ खड़े होना महाराज धृतराष्ट्र को बेहद नागवार गुजरा है। इसलिए अब उन्होंने दुर्योधन को राजा बनाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने शुरू किए हैं। कई काबिल लोगों के रहते हुए भी आंख के अंधे धृतराष्ट्र को महाराजा घोषित किया गया था। अब यही धृतराष्ट्र चाह रहे हैं कि उनका नाकाबिल पुत्र दुर्योधन गद्दी संभाले। धृतराष्ट्र को चाटुकारिता पसंद हैं इसलिए उनके आसपास चाटुकारों की भरमार है। वे स्पष्टवादियों और सच बोलने वालों को बिलकुल पसंद नहीं करते। कमोबेश ऐसा ही दुर्योधन के साथ भी है। वह भी चाटुकारों से गुलामी कराकर खुश होता है। जल्द ही दुर्योधन का राज्याभिषेक हो जाएगा और जनता पर लम्बे समय के लिए एक और नाकाबिल राज करेगा। गुलाम, गुलामी करते रहेंगे, क्योंकि गुलामी करना उनकी आदत बन गई है।
तस्वीर बेहद भयावह है…। लोग एक अंधे शासक की जय-जयकार कर रहे हैं। धृतराष्ट्र खुश है कि दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो अयोग्यता के समक्ष साष्टांग होते हैं। धृतराष्ट्र रोजाना नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो लोगों की गुलाम मानसिकता पर अट्टाहास करते हैं। राज्य में आर्थिक मंदी है, किन्तु महाराज लोगों के समक्ष झूठे आश्वासन पसोरते हैं, विकास की दुहाई देते हैं। गुलामों को भलीभांति मालूम है कि राज्य अर्थ-संकट के बुरे दौर से गुजर रहा है, लेकिन वे महाराज धृतराष्ट्र की झूठी बातों को भी स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि लोगों की कई पीढिय़ां इस राजघराने की गुलामी करते गुजर गई। गुलाम तो गुलाम होते हैं… उनसे चाहे जो करवा लो, ..उफ तक नहीं करते, क्योंकि गुलामी दिनचर्या का हिस्सा है। किन्तु कुछ लोगों के भीतर एक चिंगारी भी सुलग रही है। इस चिंगारी को महाराज धृतराष्ट्र भी महसूस किया। …तो राजकुमार दुर्योधन के लिए सत्ता की राह आसान करने का बीड़ा उन्होंने खुद अपने कंधों पर उठा लिया। चाटुकार फौज को इसके लिए जिम्मेदारियां भी बांट दी गई। आशय स्पष्ट है- हर हाल में अयोग्य दुर्योधन की ताजपोशी। लोग मन मसोसकर बैठे हैं कि कब अंधे महाराज को कोई चुनौती देने वाला आएगा या कि कब महाभारत का युद्ध शुरू होगा।
…तो मित्रों, कहानी का सार यह है कि दूसरों से पहल की अपेक्षा करने की बजाए आपको स्वयं भी नाकाबिल सत्ता के खिलाफ उठ खड़े होना होगा। भगत सिंह को आदर्श मानने से कुछ नहीं होगा। भगत सिंह की राह पर चलना होगा। परिवर्तन तभी आएगा। अंधे शासन से तभी छुटकारा मिलेगा। अन्यथा दुर्योधन की ताजपोशी तो तय है ही। दो पीढिय़ो की गुलामी और सहो। …और क्या पता, वंश आगे बढ़ा तो भविष्य की कई पीढिय़ां भी सत्ता-सुख भोगती दिखे। आपको क्या है, आपको तो गुलामी पसंद है।
आने वाले डेढ़ वर्षों में बड़ा त्यौहार है। धृतराष्ट्र ने जिस तरह से आम जनता पर राजकुमार दुर्योधन को थोपने की चेष्टा की है, उसका परिणाम भी इसी त्यौहार में तय होगा। जल्द ही पांडव और उनकी फौज अपना अधिकार मांगेंगी। धृतराष्ट्र और दुर्योधन से नाराज लोगों का प्रतिशोध भी तभी निकलेगा। जल्द ही धृतराष्ट्र के कुशासन और बड़बोलेपन का अंत होगा। जल्द ही व्यवस्था को भ्रष्टाचार का लबादा ओढ़ाने वाले और जिम्मेदार लोगों पर अपनी मंशा और जिद थोपने वाले धृतराष्ट्र का अंत होगा। जनता इंतजार में है। धृतराष्ट्र का पुत्र-मोह जल्द ही अंत की ओर बढ़ेगा।
(नोट : महाभारत के इस दृष्टांत का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। यदि लोग किसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंचते हैं तो यह महज संयोग ही होगा।)